चीनी सैनिकों के धोखे की कहानी और हमारे बहादुरों की दास्तां, लद्दाखी हीरो सोनम वांग्याल की जुबानी
आज से साठ साल पहले 21 अक्तूबर 1959 का दिन जब याद आता है, तो मन कड़वाहट से भर जाता है। भारतीय इलाके में घुसपैठ करने वाली चीनी फौज ने हमारे जवानों को धोखे से मार डाला था। हॉट स्प्रिंग में कई फुट बर्फ पड़ी थी और मैं अकेला था। मेरे सामने 10 जवानों के शव पड़े थे। उन्हें सम्मान सहित बेस कैंप तक पहुंचाना था। शवों को ले जाने के लिए मैंने लकड़ी और तिरपाल का स्ट्रेचर बनाया। कहीं से घोड़ों का इंतजाम किया। इनकी मदद से जवानों के शवों को खींचते हुए सिलुंग नाले के रास्ते हॉट स्प्रिंग (लेह में चीनी सैनिकों के कब्जे से मुक्त कराई गई भारतीय चौकी) तक लाया।
रास्ते में शव इतने क्षत-विक्षत हो चुके थे कि उन्हें आगे ले जाना बहुत मुश्किल था। कोई साथी नहीं बचा था। मैंने आसपास के इलाकों से वहीं पर लकड़िया एकत्रित की और अपने बहादुर साथियों को सलामी देकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया।
सोनम वांग्याल को प्रधानमंत्री ने किया था सम्मानित
सीआरपीएफ से रिटायर्ड और हॉट स्प्रिंग मिशन के एकमात्र जीवित लद्दाखी हीरो सोनम वांग्याल (77) ने लेह से एक खास बातचीत में उक्त खुलासा किया है। उन्होंने 1965 में मात्र 25 साल की आयु में एवरेस्ट फतह की थी। पिछले साल नई दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में पीएम नरेंद्र मोदी ने पुलिस मेमोरियल का अनावरण करते वक्त सोनम वांग्याल को सम्मानित किया था। उन्हें खासतौर पर लेह से दिल्ली बुलाया गया था। वांग्याल के मुताबिक 1962 की लड़ाई से पहले 1959 में चीनी सैनिकों ने लेह-लद्दाख के कई इलाकों में बड़ी घुसपैठ की थी। वह 21 अक्तूबर 1959 का दिन था, जब सोलह हजार फुट की ऊंचाई पर लद्दाख में शून्य से नीचे 40 डिग्री तापमान था।
चीन ने जवानों को धोखे से मार डाला
सभी जानते थे कि इस इलाके में चीनी सैनिकों ने बड़े पैमाने पर घुसपैठ की है। इसके बावजूद गिनती के जवानों को हॉट स्प्रिंग पर चौकी स्थापित करने का आदेश दे दिया गया। हमारे जवान तय इलाके में चौकी स्थापित करने में तो कामयाब हो गए, मगर बीच में कई साथी छूट गए। यह एक नई चुनौती हमारे सामने आ गई। हम अपने लापता साथियों की तलाश में निकल पड़े। इस दौरान सैकड़ों चीनी सैनिकों ने हमें घेर लिया। उन्होंने फायरिंग कर हमारे दर्जनों जवानों को धोखे से मार डाला और जो बच गए उन्हें हिरासत में ले लिया गया। सोनम बताते हैं कि हमारे जवान चीनी सैनिकों के साथ बहादुरी से लड़े थे। अनेक जवान शहीद हुए और उन्हीं शहीदों के सम्मान में हर वर्ष 21 अक्तूबर को देश में पुलिस संस्मरण दिवस मनाया जाता है।
चौकी पर कब्जा करने के लिए दो टुकड़ियां बनाईं
सोनम बताते हैं कि सितंबर 1959 में उनके दस्ते को हॉट स्प्रिंग, जिसके निकट चीनी फौज पहुंच चुकी थी, पर चौकी स्थापित करने का आदेश मिला। इसके लिए 70 जवानों की दो टुकड़ियां बनाई गईं। एक का नेतृत्व आईटीबीएफ के डीएसपी करमसिंह और दूसरी टुकड़ी की कमान एसपी त्यागी को सौंपी गई थी। हमारे बहादुरों ने चौकी को चीनी कब्जे से मुक्त करा लिया। मेरे सहित दर्जनभर जवान पकड़े गए। कुछ दिन बाद मुझे और मेरे साथियों को चुसुल एयरपोर्ट के निकट रिहा कर दिए गया।
जब हम बेस कैंप पहुंचे, तो मालूम हुआ कि आईटीबीएफ के डीएसपी करमसिंह की टुकड़ी के सात जवान जवान अभी तक बेस कैंप पर नहीं पहुंचे हैं। 20 अक्तूबर को डीएसपी कर्मसिंह के नेतृत्व में सोनम सहित करीब दो दर्जन जवान अपने लापता साथियों की तलाश में निकल पड़े। उन्हें रास्ते में चीनी सैनिकों और उनके घोड़ों के चिह्न दिखाई दिए। इससे पहले कि वे कोई रणनीति बनाते, एकाएक चीनी सैनिकों ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया।
जब हम बेस कैंप पहुंचे, तो मालूम हुआ कि आईटीबीएफ के डीएसपी करमसिंह की टुकड़ी के सात जवान जवान अभी तक बेस कैंप पर नहीं पहुंचे हैं। 20 अक्तूबर को डीएसपी कर्मसिंह के नेतृत्व में सोनम सहित करीब दो दर्जन जवान अपने लापता साथियों की तलाश में निकल पड़े। उन्हें रास्ते में चीनी सैनिकों और उनके घोड़ों के चिह्न दिखाई दिए। इससे पहले कि वे कोई रणनीति बनाते, एकाएक चीनी सैनिकों ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया।
अगले दिन तक चलता रहा हाथ में मिट्ठी उठाने का खेल...
पत्थर को बनाया जंग का बहाना
दूसरी ओर खड़ी चीनी फौज के सामने डीएसपी कर्मसिंह ने अपने हाथ में मिट्टी उठाकर कहा, यह जमीन हमारी है। आप यहां से वापस लौट जाओ। चीनी सैनिक वापस तो नहीं गए, लेकिन वे वैसा ही करने लगे, जैसा हमारे डीएसपी कर रहे थे। अगले दिन दोपहर तक यह खेल चलता रहा। चीनी सैनिक लड़ाई का बहाना तलाश रहे थे, जो उन्हें मिल भी गया। उन्होंने लड़ाई का बहाना एक पत्थर को बनाया। वह पत्थर, जिसे चीनी फौज के कमांडर ने हमारे ऊपर फेंका था। जब हमने इसका विरोध किया तो चीनी फौज ने हम पर चारों तरफ से फायरिंग शुरू कर दी। बर्फ में हमारे हथियार जवाब दे चुके थे।
उस लड़ाई में हमारे 10 जवान शहीद हुए और डीएसपी करमसिंह सहित कई सिपाही चीनी सैनिकों की गिरफ्त में आ गए। सिपाही मक्खन लाल, जो उस वक्त घायल हुआ था, आज तक वापस नहीं लौटा। चीनी फौज ने बाकी जवानों को बाद में रिहा कर दिया गया, मगर उनमें मक्खन नहीं था। आज भी जब उसकी याद आती है तो आंखें भर आती हैं। सोनम बताते हैं, वे आज भी चीन पर भरोसा नहीं कर सकते हैं। पिछले कुछ सालों में वह हमारी सीमा में घुसकर उसे अपना बताता रहा है। हालांकि उसे मालूम है कि आज साठ के दशक वाला भारत नहीं है। बहुत कुछ बदल चुका है। सैन्य और आर्थिक मामले में देश आगे बढ़ रहा है। यही वजह है कि चीन भी आज आपसी संबंध सुधारना चाहता है। मौजूदा समय में चीन पहले जैसा कोई दुस्साहस नहीं कर सकता। उसे 1959, 1962 और 2019 का फर्क मालूम है।
उस लड़ाई में हमारे 10 जवान शहीद हुए और डीएसपी करमसिंह सहित कई सिपाही चीनी सैनिकों की गिरफ्त में आ गए। सिपाही मक्खन लाल, जो उस वक्त घायल हुआ था, आज तक वापस नहीं लौटा। चीनी फौज ने बाकी जवानों को बाद में रिहा कर दिया गया, मगर उनमें मक्खन नहीं था। आज भी जब उसकी याद आती है तो आंखें भर आती हैं। सोनम बताते हैं, वे आज भी चीन पर भरोसा नहीं कर सकते हैं। पिछले कुछ सालों में वह हमारी सीमा में घुसकर उसे अपना बताता रहा है। हालांकि उसे मालूम है कि आज साठ के दशक वाला भारत नहीं है। बहुत कुछ बदल चुका है। सैन्य और आर्थिक मामले में देश आगे बढ़ रहा है। यही वजह है कि चीन भी आज आपसी संबंध सुधारना चाहता है। मौजूदा समय में चीन पहले जैसा कोई दुस्साहस नहीं कर सकता। उसे 1959, 1962 और 2019 का फर्क मालूम है।